वो शेहेर तेरा मुझे आज भी बुलाता है
तू रूठा हुआ है.. मगर वो रोज़ मनाता है
दोहराता है किस्से वो तेरे
तेरा इश्क़ जताता है
मुझे तेरी रुस्वाई दिखा कर
एक लम्हा फिर तड़पाता है..
तकता है मुझे कभी
कभी 'खूबसूरत' बुलाता है
कभी नाज़ों से मुझे
पलकों पे बिठाता है
भर देता है मुझमें ज़िन्दगी
और ख़ुशी की अदा लाता है..
सपने देता है हज़ार
और पल में मुकर जाता है..
बाँधने लगा है मुझसे तार कोई
जोड़ता है आरज़ू.. हर बार कोई
नब्ज़ मेरी टटोल कर
ख्वाहिश पढता है वो
आँखों में मेरे खीशियों की
रज़ा ढूंढता है वो..
कभी दौड़ पड़ता है मेरे संग
कभी वक़्त भी ठेहेर जाता है
सुबहों और शामो के रंग वही
बारिश और यादों के संग वहीं
आशियाना मेरा सजा जाता है..
कहता है तेरा शेहेर मुझसे
इश्क़ मैंने किया था
उस पे ऐतबार न करना था
मुझमें जीना था तुझे
उसका इंतज़ार न करना था
आशिकी पे दिल्ली की
भर आतें हैं अरमां मेरे
पास बुला कर.. दिल बहला कर..
कहता है तेरा शेहेर मुझे
'की तुझे प्यार न करना था!'
-Nisha Garg
Beautiful :)
ReplyDeleteBeautiful :)
ReplyDeleteThank you Aditya :)
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